Monday, May 31, 2010

एफ़ एम गोल्ड के प्रस्तुतकर्त्ताओं का हाल अब आउटलुक की ज़बानी जानिये

आउटलुक (हिन्दी) के सम्पादक ने जब एफ़ एम गोल्ड की हालत की खबरें सुनीं तो उन्हें चिंता हुई. उसका नतीजा यह स्टोरी है. कोई भी संवेदनशील नागरिक इन बातों को गंभीरता से लेगा. पढ़िए आप भी.

पेज १


पेज २

Tuesday, May 25, 2010

आकाशवाणी के दिल्ली केंद्र में रखे पुराने ग्रामोफोन रिकार्ड्स कहाँ गए ?

संगीत रसिकों को अक्सर एफ़ एम (गोल्ड) पर पुराने-पुराने गाने सुनकर लगता है की यह सारा संगीत आल इंडिया रेडियो के पास सुरक्षित होगा. पर काश ऐसा होता! कार्यक्रम करनेवाले अपने निजी प्रयासों से बहुमूल्य संगीत लाते हैं और श्रोताओं के साथ अपना सुख साझा करते हैं. सवाल है कि हज़ारों पुराने ग्रामोफोन रिकार्ड्स कहाँ गए?

Saturday, May 22, 2010

ख़बर पढ़कर आहत हुआ श्रोता


मित्रो,

हमारे इस चंद रोज़ पुराने अपना रेडियो बचाओ अभियान के दौरान अखबारों में बहुत कुछ छपा है और बहुत कुछ छपने को है । ढोल के अन्दर की पोल उजागर हुई है। एफ एम गोल्ड प्रस्तोताओं को सुन कर रीझने वाले श्रोता सकते में आये हैं । पत्रकार पसोपेश में पड़े हैं ये देखकर कि आवाज़ की पुरकशिश दुनिया से जुड़े इन कलाकारों के गले घोंटने पर आकाशवाणी के चंद अधिकारी किस क़दर आमादा हैं . विडम्बना ये है की ये अधिकारी उन्हीं के गले दबाने की कोशिश में हैं जिनके मुंह से निकला हुआ एक-एक शब्द इनके घर परिवार को चलाने में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। जबकि ये बेचारे बगैर तनख्वाह पाए साल-साल भर गुज़ार देते हैं और इस बारे में मुंह से आवाज़ तक नहीं निकालते । तिस पर तुर्रा ये कि अपमान और बदसलूकी भी इन्ही के हिस्से में आते हैं । जिस आकाशवाणी में नेपाली को विदेशी भाषा बताकर भारत के संविधान का खुलेआम उल्लंघन होता हो । सूचना के अधिकार के तहत मांगी जाने वाली सूचनाओं से खिलवाड़ होता हो । उसके दंभी अधिकारियों से आप और क्या उम्मीद रख सकते हैं । बहरहाल ,हमारे इस दर्द को अखबारों में पढ़कर बहुत से लोग आहत हुए हैं । हमारे साथ हुए हैं । जिनमें हमारे अनगिनत श्रोता भी शामिल हैं । ऐसे ही एक श्रोता और सामाजिक कार्यकर्ता श्री नगेन्द्र मिश्रा ने दैनिक जागरण में एफ एम गोल्ड के प्रस्तोताओं की बदहाली की खबर पढ़ी तो इस मोर्चे में शामिल होने की और हमारा हर संभव साथ देने की पेशकश की । इस सम्बन्ध में नगेन्द्र जी का सभी एफ एम गोल्ड presenters के नाम सन्देश हम प्रकाशित कर रहे हैं --

आवाज़ की दुनिया के हरदिलअज़ीज़ साथियो ,
हालांकि आपको हर दिल अज़ीज़ लिखते वक़्त थोडा सा संशय मन में आ रहा है क्योंकि आप शायद आकाशवाणी के उन कुछेक अधिकारियों के अज़ीज़ नहीं हैं जो आपकी बदौलत अपने पेट पाल रहे हैं । घर चला रहे हैं । और अकड़ के साथ खुद को आकाशवाणी का अधिकारी और आपका माईबाप बताते फिर रहे हैं। २० मई ,२०१० के दैनिक जागरण अखबार में आकाशवाणी में चल रही अनियमितताओं की और आपके साथ हो रहे दुर्व्यवहार की ख़बर पढ़ी तो सन्न रह गया । मन आहत हुआ ये जानकर कि आकाशवाणी दिल्ली केंद्र के निदेशक और एफ एम गोल्ड की programme executive जैसे अधिकारी इतने खुदगर्ज़ और एहसान फरामोश हो गए हैं कि ये उन कलाकारों का भी सम्मान नहीं करते जिनकी बदौलत इनका खुद का वजूद है । दैनिक जागरण को मैं इतनी बेबाकी के साथ ये ख़बर छापने के लिए धन्यवाद देना चाहूँगा । सच पूछिए तो ख़बर पढ़कर ये लगा कि आप जैसों से सहानुभूति रखने वाले संवेदनशील पत्रकार आज भी मौजूद हैंलेकिन अफ़सोस कि भारत के राष्ट्रपति के द्वारा जारी पत्रकों में गड़बड़ी करने वाले आकाशवाणी दिल्ली के केंद्र निदेशक और एफ एम गोल्ड की programme executive ख़बर छपने के बाद भी अपने पदों पर बने इठला रहे हैं .क्या इन्होंने अपनी शर्मोहया और नैतिकता बेच खाई है ?अगर ये आगे भी अपने अपने पदों पर बने रहे तो इसे अराजकता की हद ही समझिये । आकाशवाणी की महानिदेशक तो इनकी शिकायतें सुनकर सोई हुई हैं मगर आशा है कि मंत्री महोदया इस ओर दृष्टिपात करेंगी । आप सब से अनुरोध है कि अन्याय के विरुद्ध ये लडाई जारी रखिये । मैं और मेरे जैसे आपके कितने ही साथी इस लडाई में हर तरह से आपके साथ हैं । मैं एफ एम गोल्ड के सभी श्रोताओं से , आकाशवाणी के सभी संवेदनशील कर्मचारियों से ,पत्रकारों से और देश के सभी न्यायप्रिय नागरिकों से निवेदन करना चाहूँगा कि आपके सहयोग के लिए लामबंद हों ।
आपका साथी
नगेन्द्र मिश्रा

Thursday, May 20, 2010

आकाशवाणी के इतिहास में पहली बार कैजुअल्स अपने सम्मान की खातिर उठ खड़े हुए हैं!

मित्रो,
हम, लाखों रेडियो श्रोताओं के जीवन में खुशी और आशा का संचार करते हैं। उन्हें जानकारियों और ताज़ा खबरों से लैस करके उनके जीवन का अँधेरा मिटाते हैं। लेकिन... खुद हमारा जीवन कैसे अंधेरों से घिरा है।
दूसरों का जीवन प्रकाशित करने वाले हम खुद कितने बेबस और डरे हुए हैं ! कारण ...
कहीं हमारी ये दो टके की "नौकरी" न छीन जाए ... हमारी इसी मजबूरी और भय का दोहन करते हैं वो जो यहाँ पर परमानेंट हैं और जिनके लिए हम कीड़े मकोड़ों और दर दर के भिखारियों से अधिक हैसियत नहीं रखते . हर रोज़ पास बनवाने के लिए आकाशवाणी रिसेप्शन पर अपमान सहते हैं, प्रोग्राम को बेहतर बनाने में हमारे साथ कोई खडा नहीं होता , हाँ छोटी सी कमी को आउट ऑफ़ प्रपोर्शन प्रस्तुत किया जाता है, हम अप्रासंगिक और पुरानी पड़ चुकी मशीनों के साथ जूझते हैं, लड़कियां अक्सर ये शिकायत करती हैं की रात के ड्रायवर पिए होते हैं या उन्हें उनकी मंजिल से दूर कहीं छोड़ जाते हैं, अगर हम एन सी आर में रहते हैं तो हमको ट्रांसपोर्ट भी नहीं मिलता, जिस ऑफिस में प्ले लिस्ट बानाने तक को कागज़ न मिलता हो ...पीने का पानी न हो... अयोग्य और उथले अफसरों की खुशामद ही जहां ड्यूटी पाने का आधार हो... ऐसे ओर्गनाइज़ेशन से प्यार कैसे बढ़ पायेगा ...
यही सब सोचते हुए और अपने प्यारे रेडियो को उसकी खोयी हुई चमक में वापस लाने के लिए हम और आप "अपना रेडियो बचाओ" नाम का अभियान चला रहे हैं। इस बात की ज़रुरत हम सबने इसलिए समझी है कि हमारे ही बल पर यह इतना बड़ा सफ़ेद हाथी ज़िंदा है और हमारे खून पसीने और लगन का ही नतीजा है कि आकाशवाणी पर कोई कार्यक्रम प्रसारित हो पाता है ... वर्षों से अस्थाई और कैजुअल का धब्बा लगा कर जीते हुए हमें कोई ऐतराज़ नहीं था लेकिन हालात बाद से बदतर होते जा रहे हैं। अफसरों में यह अहसास पक्का होता जा रहा है कि वो इस आकाशवाणी के भाग्यविधाता हैं और संविधान के प्रति उनकी कोई जवाब देही नहीं है।
वर्षों से यही क्रम चला आता है कि छः -छः महीने साल - साल भर पेमेंट नहीं होता ... इस साल तो हद ही हो गई है वित्तीय वर्ष ख़त्म होने के बाद अब मई भी ख़त्म होने को आया और पैसे नहीं दिए जा रहे हैं... वैसे जब पेमेंट होता भी है तो अकाउंट डिपार्टमेंट वालों के नखरों से कौन अनजान है?
हम आपके इस भरपूर उत्साह और कंधे से कंधा मिला कर चलने की भावना को सर आँखों पर रखते हैं और आशा करते हैं कि आप इसी तरह भारी संख्या में एकजुट रहेंगे और अपने प्यारे रेडियो यानी आकाशवाणी को वापस सम्मान दिलाएंगे ... भूलना नहीं चाहिए कि यह वो इमारत है जहां देश की सर्वाधिक प्रतिभाशाली हस्तियाँ काम करने बुलाई जाती रही हैं और जिनके रात-दिन के परिश्रम से देश की जनता का जीवन कल्याणमय हुआ है. आज किसी को भी इस ओर्गनाइज़ेशन पर रोना आयेगा जहां भाई भतीजों की औसत प्रतिभाएं एयर पर हैं ...दीवारों पर पान की पीकें और थूक के थक्के ...आवारा कुत्तों की यहाँ वहां पडी भीड़ ... एफ़ एम गोल्ड पर फर्जी कागज़ साइन कराए जा रहे हैं और बैक डेट में अंडर टेकिंग्स ली जा रही हैं ...पेक्स अपनी कमियों का ठीकरा प्रस्तोताओं के सर पर फोड़ रही हैं और चाटुकारों को सर पर बैठा रही हैं ... रेनबो पर फीस का स्ट्रक्चर ऐसा मनमाना बना हुआ है कि मौजूदा पेक्स भी विसंगतियों को देखकर हैरान हैं ...इन्द्रप्रस्थ और राजधानी पर मिलने वाली फीस अनस्किल्ड दिहाड़ी मज़दूरों से भी कम है डीटीएच वाले ४०५ रुपये प्रतिदिन पाने के हकदार हैं पर उन्हें भी वर्ष २००८ से पैसे नहीं मिले हैं ...अभी तो सिर्फ दिल्ली केंद्र की बातें हुई हैं बाकी सभी विभागों की पूंछ उठाइये तो क्या नजर आएगा कल्पना की जा सकती है।
इन स्थितियों की खबर पाकर मीडिया और बौद्धिक जगत से लेकर आम श्रोता और बड़े -बड़े वो अफसरान भी दुखी हो उठे हैं जो एफ़ एम गोल्ड आदि चैनलों के साथ दिल की गहराइयों से जुड़े हैं ...आये दिन अखबारों और मीडिया में जो बातें चल रही हैं वो इस बात का प्रमाण हैं कि आपकी आवाज़ को जनता की आवाज़ माना गया है और सब लोग आपको प्यार करते हैं और आपका जीवन सुखी देखना चाहते हैं इसलिए डंटे रहिये और खुश होइए कि कि निकम्मे और मोटी चमड़ी वाली मुलायम आवाज़ें बस थोड़े दिनों के लिए ही हैं । क्योंकि जब तक चीज़ें ठीक नहीं हो जातीं ...यह सवाल पूछा जाता रहेगा कि "बताइये दुनिया के उस देश का नाम ...जहां के रेडियो पर बोलने वाला ही सबसे अशक्त, भयाक्रांत और अधिकारविहीन है?"

आइये इन दिनों मीडिया में चल रही चर्चाओं पर दृष्टि डालें ....

नवभारत टाइम्स, ५ मई २०१० यहाँ क्लिक करें


दैनिक नई दुनिया, ३ मई २०१०



दैनिक भास्कर में राजकिशोर, ५ मई २०१०



जनसत्ता में अज़दक १६ मई २०१०



राष्ट्रीय सहारा १८ मई २०१०


दैनिक जागरण, २० मई २०१०



दैनिक जागरण, २० मई २०१०



हिन्दुस्तान टाइम्स ,२६ मई, २०१०