Sunday, November 7, 2010

आज जनसत्ता में घोटाले की तरंगें


पिछले नौ साल से 106.4 मेगाहर्ट्ज पर प्रसारित एफएम गोल्ड को नौ दिन के भीतर 100.1 मेगाहर्ट्ज पर लाने की घोषणा और फिर मीडिया में लगातार इसका विरोध किए जाने के बाद दबाव में इस फैसले को वापस लिए जाने से भावनात्मक स्तर पर जुड़े एफएम गोल्ड के करोड़ों श्रोताओं और सालों से इसकी बेहतरी के लिए काम करनेवाले रेडियोकर्मियों को यह फैसला खुशी और राहल देनेवाला है। लेकिन आनन-फानन में फ्रीक्वेंसी बदलकर एक जमे-जमाए चैनल को उजाड़ने, उसकी जगह निजी एफएम चैनल को फ्रीक्वेंसी दिए जाने और विरोध की स्थिति में उस फैसले से प्रसार भारती का पैर खींच लेने की घटना कोई राहत की बात नहीं बल्कि रेडियो तरंगों को लेकर भारी घोटाले का संकेत है।

पढ़ने-सुननेवाले लोगों को यह बात जरुर हैरान कर सकती है कि जिस गलत तरीके से इस देश में जमीन की अंधाधुन खरीद-फरोख्त जारी है,निजी कंपनियों और बिल्डरों को फायदा पहुंचाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के तंत्र कमजोर किए जाते हैं,ठीक उसी तरह हवा में तैरनेवाली तरंगों की खरीद-फरोख्त और इससे जुड़े निजी मीडिया संस्थानों को फायदा पहुंचाने का काम जारी है। इस मामले में सबसे दुखद पहलू है कि यह काम कोई और नहीं बल्कि स्वंय प्रसार भारती कर रहा है जिसके उपर जनसंचार माध्यमों के जरिए देश की सुरक्षा, सांस्कृतिक विविधता और जागरुकता का विस्तार करने की जिम्मेदारी है।

22 अक्टूबर को प्रसार भारती ने घोषणा की कि एफएम गोल्ड चैनल को 106.4 मेगाहर्ट्स से हटाकर100.1 मेगाहर्ट्ज कर दिया जाएगा। पिछले चार-पांच दिनों में प्रसार भारती के इस फैसले का मीडिया में जमकर विरोध हुआ और यह सवाल लगातार उठाए गए कि नौ साल से जिस फ्रीक्वेंसी पर जनता के पैसे से कोई रेडियो पहले से ही प्रसारित हो रहा है,वो न केवल सबसे ज्यादा सुना जानेवाला चैनल है बल्कि व्यावसायिक दृष्टिकोण से आकाशवाणी के लिए आमदनी का जरिया भी है तो उसे महज निजी कंपनी को फायदा पहुंचाने की नीयत से कैसे हटाया जा सकता है? प्रसार भारती ने इस मामले में पहले तो तर्क दिया कि ऐसा वह सिर्फ इसलिए कर रहा है कि इससे एफएम गोल्ड की गुणवत्ता में पहले से बढ़ोतरी होगी। प्रसार भारती का यह तर्क बहुत ही लचर है। इस बात को हम प्रसार भारती के फैसले के पहले दिन से ही समझ रहे थे। यह एक बड़ा सवाल था कि नौ साल से स्थापित चैनल की फ्रीक्वेंसी को सिर्फ नौ दिन के भीतर बदलने के लिए प्रसार भारती इतनी बेचैन क्यों है? एफएम गोल्ड जिसे कि मौजूदा फ्रीक्वेंसी पर बहुत ही बेहतर तरीके से सुना जा सकता है,अचानक से इसे हटाने के पीछे उसकी क्या रणनीति हो सकती है? तब मीडिया में आए इस तरह के सवालों को ध्यान में रखते हुए प्रसार भारती ने घोषणा की कि 31 अक्टूबर से लेकर 3 अक्टूबर तक एफएम गोल्ड को दोनों फ्रीक्वेंसी पर पर सुना जा सकेगा। 4 अक्टूबर से यह चैनल सिर्फ 100.1 मेगाहर्ट्ज पर होगा।

दो दिनों तक हमने लगातार दोनों ही फ्रीक्वेंसी पर एफएम गोल्ड को सुना और कुछ हिस्से रिकार्ड भी किए। हमने साफ तौर पर महसूस किया कि जिस एफएम गोल्ड को 106.4 मेगाहर्ट्ज पर सुना, उसकी गुणवत्ता के आगे 100.1 मेगाहर्ट्स पर एफएम गोल्ड की गुणवत्ता बहुत ही घटिया है। एक ही वॉल्यूम क्षमता पर दोनों फ्रीक्वेंसी पर सुनने से 100.1 पर आकर आवाज बिल्कुल दब जाती है। 100.1 वही फ्रीक्वेंसी है जिस पर राष्ट्रमंडल खेलों के लिए अलग से एक रेडियो चैनल स्थापित किया गया और जिसके लिए लाखों रुपये खर्च किए गए। यह अलग बात है कि राष्ट्रमंडल खेलों से जुड़ी जानकारी के लिए श्रोताओं ने इस चैनल को बिल्कुल नहीं सुना,इस पर राष्ट्रमंडल की खबरों से ज्यादा मनोरंजन के कार्यक्रम प्रसारित हुए। नतीजा इस दौरान यह चैनल अपनी कोई पहचान नहीं बना पाया। अब दो महीने बाद राष्ट्रमंडल खेलों से पैदा हुए बाकी कचरे की तरह सरकार प्रसार भारती के सहयोग से इस चैनल को कचरा मानकर निबटाना चाहती है। जिस खेल भावना के विकास के लिए अकेले रेडियो पर लाखों रुपये खर्च हुए,उस रेडियो को दो महीने बाद ही रद्दी की टोकरी में डालने और उसकी जगह एफएम गोल्ड को स्थापित करने की बात पचाना किसी के लिए भी आसान नहीं है। संभव है राष्ट्रमंडल खेलों में हुए घोटाले के साथ इसकी भी जांच से कुछ नतीजे निकलकर सामने आएं। नहीं तो, होना तो यह चाहिए कि प्रसार भारती राष्ट्रमंडल के नाम पर बने इस चैनल को पूरी तरह खेल को समर्पित कर दे। इससे न केवल खेलजगत को फायदा होगा, अलग से आकाशवाणी की आमदनी बढ़ेगी बल्कि एफएम गोल्ड और रेनवो को भी विकास का ज्यादा मौका मिलेगा। मीडिया में खासकर अंग्रेजी अखबारों में यह बात प्रमुखता से और लगातार पहले पन्ने पर आते रहे।

रेडियो की फ्रीक्वेंसी बदलने का मामला सिर्फ नंबर के बदल जाने का मामला नहीं है। रेडियो के लिए फ्रीक्वेंसी ही उसका ब्रांड हैं। खासतौर से अब जबकि एफएम चैनलों के जरिए एक माध्यम के तौर पर रेडियो का विस्तार हो रहा है जबकि एक संचार उपकरण के तौर पर रेडियो की हालत बहुत ही खराब है। अब श्रोताओं का एक बड़ा वर्ग रेडियो या तो मोबाइल फोन के जरिए,या तो आइपॉड या एमपी थ्री के जरिए या फिर कम्प्यूटर पर मुफ्त में उपलब्ध साइटों के जरिए सुनता है,उनके लिए रेडियो चैनलों के नाम से ज्यादा फ्रीक्वेंसी मायने रखती है। सबसे बड़ा सवाल है कि प्रसार भारती ने नौ दिन में एफएम गोल्ड की फ्रीक्वेंसी बदलने के फैसले का प्रसार कितना किया? क्या उसने लगातार विज्ञापन और अभियान के माध्यम से यह माहौल बनाने की कोशिश की कि एफएम गोल्ड की फ्रीक्वेंसी बदली जा रही है? ले-देकर जो भी सूचना आयी वो या तो आकाशवाणी की वेबसाइट पर या फिर आकाशवाणी के चैनलों पर ही। इन सबके साथ एक बड़ा सवाल कि अगर एफएम गोल्ड की मौजूदा फ्रीक्वेंसी खराब है तो उसे कोई निजी मुनाफा कमानेवाली मीडिया कंपनी क्यों लेना चाहती है?

4 नबम्वर से एफएम गोल्ड को अपनी नयी फ्रीक्वेंसी 100.1 पर आ जाना चाहिए था। लेकिन प्रसार भारती ने अपने इस फैसले से पैर खींचते हुए उसे वापस वहीं पुरानी फ्रीक्वेंसी 106.4 पर बने रहने की बात की। जाहिर है प्रसार भारती का यह फैसला पहले की तरह ही उसके खुद का फैसला नहीं है। देशभर के राष्ट्रीय अखबारों ने फ्रीक्वेंसी बदलने का जिस तरह से विरोध किया,प्रसार भारती उस दबाव में आकर अपने फैसले वापस लिए। लेकिन,फिर वही सवाल कि क्या प्रसार भारती ने अपने इस नए फैसले के लिए कोई पहले से रणनीति बनायी?

इस पूरे मामले में जो दिलचस्प पहलू निकलकर सामने आए,उस पर बात करने से फ्रीक्वेंसी यानी रेडियो तरंगों को लेकर प्रसार भारती के भीतर का चल रहा बंदरबांट बेहतर तरीके से समझा जा सकता है।

पहली बात कि एफएम गोल्ड की फ्रीक्वेंसी बदले जाने की किसी भी तरह की जानकारी स्वयं प्रसार भारती बोर्ड की अध्यक्ष मृणाल पांडे को नहीं दी गयी। मृणाल पांडे ने एक अंग्रेजी अखबार/ दि हिन्दू को बताया कि उन्हें इस बात की जानकारी मीडिया में आयी खबरों से मिली। इससे पहले भी आकाशवाणी के भीतर भारतीय भाषा को लेकर जो विवाद चल रहे हैं, उस पर गौर करें जिसमें नेपाली को विदेशी भाषा करार दिया गया और उसी हिसाब से प्रस्तोताओं को भुगतान किया,7 सितंबर को संसदीय राजभाषा समिति की मौखिक साक्ष्य सत्र में आकाशवाणी को इसके लिए फटकार लगायी गयी, तो यहां भी मृणाल पांडे को इससे दूर रखा गया। इससे समझा जा सकता है कि प्रसार भारती के भीतर किस तरह के फैसले लिए जा रहे हैं और काम हो रहा है जिसके बारे में स्वयं बोर्ड के अध्यक्ष को जानकारी नहीं है।

दूसरी बात, फ्रीक्वेंसी बदले जाने के सवाल पर जब यह बात सामने आयी कि 2006 में ही दूसरे दौर में एफएम चैनलों की विस्तार योजना के तहत क्षेत्रीय स्तर पर 106.4 मेगाहर्ट्ज की फ्रीक्वेंसी बीएजी प्रोडक्शन को दे दी गयी थी,इससे एक नयी कहानी सामने आयी।

हरियाणा के करनाल और हिसार जैसी जगहों पर एक ही फ्रीक्वेंसी पर आकाशवाणी का एफएम गोल्ड चैनल भी चलता रहा और बीएजी प्रोडक्शन का रेडियो धमाल भी। ऐसा होने से एक-दूसरे के उपर फ्रीक्वेंसी की चढ़ा-चढ़ी होती रही और नतीजा यह कि वहां के श्रोता एफएम गोल्ड को बेहतर तरीके से सुन नहीं पाते। अब जबकि प्रसार भारती ने दिल्ली में एफएम गोल्ड को पुरानी फ्रीक्वेंसी पर बने रहने की बात दोहरायी है तो सवाल उठते हैं उन इलाकों में जहां कि एक ही फ्रीक्वेंसी पर निजी चैनल भी चल रहे हैं और एफएम गोल्ड भी,उसका क्या होगा? दिल्ली के श्रोताओं की समस्या फिर भी हल होती दिख रही है लेकिन देश के बाकी हिस्सों का क्या होगा? साथ ही अगर 2006 में ही निजी चैनल के हाथों 106.4 मेगाहर्ट्ज की फ्रीक्वेंसी दे दी गयी थी तो अब तक उस पर एफएम गोल्ड क्यों चलाया जाता रहा? आनन-फानन में फैसला लेकर और पुरानी फ्रीक्वेंसी को एफएम गोल्ड के हवाले कर देने से प्रसार भारती को अपने गले की हड्डी निकलती जरुरी दिखाई दे रही है लेकिन श्रोताओं के सामने एक बड़े कुचक्र का संकेत सामने आया है और वह यह कि

प्रसार भारती आकाशवाणी के तमाम चैनलों को 100 मेगाहर्ट्ज से 103.7 मेगाहर्ट्ज तक रखना चाहता है। ऐसा करने से बाकी की फ्रीक्वेंसी निजी कंपनियों के लिए सुरक्षित हो जाएगी। इस साल के दिसंबर में एफएम चैनलों के विस्तार का जो तीसरा दौर शुरु हुआ,ऐसा करने से निजी एफएम चैनलों पर समाचार प्रसारित किए जाने की जो बात चल रही है, उसका रास्ता साफ होगा। आज निजी चैनलों के लिए एफएम गोल्ड सबसे बड़ा बाधक है क्योंकि इस पर अभी 46 प्रतिशत सामग्री खबरों से संबंधित होती है। फ्रीक्वेंसी बदलने से एफएम गोल्ड अपने आप कमजोर हो जाएगा और निजी चैनलों को खबर के नाम पर वही सब करने का मौका मिल सकेगा जो कि टेलीविजन चैनल कर रहे हैं।

एफएम गोल्ड को कमजोर और पंगु करने की कवायद पिछले कई महीनों से चल रही है। कभी महीनों प्रस्तोताओं का वेतन रोककर तो कभी गैरजरुरी शर्तों पर दबाव में हस्ताक्षर करवाकर। तकनीकी रुप से चैनल के लिए 20 मेगावाट क्षमता आवंटित करने की बात पर सिर्फ 10 मेगावाट क्षमता मुहैया करवाकर इसकी गुणवत्ता खराब की जा रही है। इस तरह रेडियो तरंगों को लेकर प्रसार भारती के भीतर भारी गड़बड़ियां चल रही है और अपने स्थापित चैनलों को तहस-नहस करके निजी चैनलों को लाभ पहुंचाने का काम हो रहा है।

चूंकि यह जमीन,पानी,प्राकृतिक संसाधनों की तरह सीधे-सीधे लोगों की जानकारी में नहीं है इसलिए इसके विरोध में आवाजें नहीं उठतीं। हम इस फैसले से खुश हो सकते हैं कि प्रसार भारती हमारे लोकप्रिय चैनल का गला घोंटने में नाकाम रहा है और हमें हमारा चैनल वापस उसी फ्रीक्वेंसी पर मिल रहा है। लेकिन देखना होगा कि तरंगों के इस घोटाले में शामिल बिचौलिए की पहचान प्रसार भारती और सरकारी तंत्र कितनी गंभीरता से कर पाती है और प्रसार भारती के भीतर संभावित बड़े घोटाले के पीछे के सच को कितना उजागर कर पाती है?

विनीत कुमार

( मूलतः जनसत्ता 7 नबम्वर 2010 में मामूली संसोधन के साथ प्रकाशित

Friday, November 5, 2010

एफ़ एम गोल्ड : "तहलका" में

यहाँ पढ़िए तहलका का क्या कहना है !

एफ़ एम गोल्ड आज फिर चर्चा में : द टाइम्स ऑफ़ इंडिया

यहाँ पढ़िए

एफ़ एम गोल्ड आज फिर चर्चा में : द पायनियर

पायनियर पिछले पांच दिनों से लगातार आल इण्डिया रेडियो के शीर्ष योजनाकारों की खबरें ले/ दे रहा है ...पढ़िए कि आज क्या लिखा ...यहाँ क्लिक कीजिये

Thursday, November 4, 2010

ताज़ा...बेहद ताज़ा !

१००.१ मैगा हर्ट्ज़ पर एफ़ एम दिल्ली नाम का चैनल क्या सचमुच कामनवेल्थ खेलों के लिए बनाया गया था ...यह सवाल आज और कल सदा ही प्रासंगिक रहेगा ... इस बात की जांच की जाए तो शायद कुछ और राज़ बेपर्दा हों कि आखिर इसे बनाया क्यूं गया... कितना पैसा इस पर खर्च हुआ और कितनी "कमाई" हुई!!!
आज रात ११ बजे से अगर इस का नाम मिटने वाला है तो क्या इसलिए इसे ये सज़ा दी जारही है कि इस पर "योजनाकार" अपनी योजनाओं के झंडे न गाड़ सके ??
ये १०६.४ वाले बड़े नाटी बच्चे हैं जी ...

ताज़ा खबर

खबरें ही खबरें ! अजी क्या क्या पढ़ें ?.........लीजिये आवृत्ति परिवर्तन आख़िरकार रुक ही गया : ( कृपया ध्यान दें : पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंकों पर चोट करें ) http://www.dailypioneer.com/DisplayContent.aspx?ContentID=294390&URLName=Plan-to-shift-FM-Gold-channel-to-new-frequency-shelved-AIR http://hindu.com/2010/11/04/stories/2010110457521400.htm http://news.in.msn.com/national/article.aspx?cp-documentid=4535886 http://timesofindia.indiatimes.com/india/Prasar-Bharati-AIR-spar-over-FM-Gold/articleshow/6860573.cms http://www.dailypioneer.com/294147/BJP-Left-flay-FM-Gold-frequency-shift.html http://economictimes.indiatimes.com/news/news-by-industry/media/entertainment-/entertainment/Prasar-Bharati-takes-exception-to-AIRs-plan-on-FM-Gold/articleshow/6863840.cms

आवृत्ति परिवर्तन

कुछ तो पढ़िए कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ ।
तो आइये पढ़ें कि आज के दो अंग्रेजी अखबार क्या कहते है FM Gold की आवृत्ति में परिवर्तन के सम्बन्ध में :
(नोट -पढने के लिए नीचे दिए लिंकों पर चोट करें)
http://www.thehindu.com/todays-paper/article864188.ece http://www.dailypioneer.com/293909/AIR-set-to-give-up-its-golden-channel.html

कहो कहो ... न कहो न कहो

पहले कहा कि कहो
फिर कहा कि मत कहो
फिर कहा कि चलो ऐसे कह दो
अब कहेंगे वैसे कह दो


लीजिये साहब, दिल्ली पुलिस दशमलव वन मेगाहर्ट्ज़, ओह सॉरी 100.1 मेगाहर्ट्ज़ भी साथ साथ बोला गया आखिर। डर का आलम देखिये, लिखने में भी दो फम्बल हो गए।
धडाधड लोगों के ऐस्मैस आण लाग रे कि यूं सुणाई क्यूं न दे रा 100 दशमलव वाले पे। जाणे के बीमारी लागरी सू। पुराणे वाली पे चैन नि आत्ता के.

Tuesday, October 26, 2010

तीन दिनों का टाइम तो दिया है, बच्चे की जान लेगा क्या ?

दस साल से स्थापित १०६.४ फ्रीक्वेंसी को बदलने की हडबडी पर कोई दंग हो न हो हम एफ़ एम गोल्ड वाले ज़रूर हैं लेकिन आला अफसरों को बड़ी जल्दी है जी और वो इसे तीन दिन में करना चाहते हैं ... हाय १००.१ तू क्यूँ आया ...आया तो साफ़ सुनाई क्यूं न दिया ???

Monday, October 25, 2010

नई फ्रीक्वेंसी और गुणवत्ता की आड़ उर्फ़ हमार कोई का करिहे ??


दस साल से स्थापित फ्रीक्वेंसी को हफ्ते भर में बदल देने की ये बेचैनी कुछ हज़म होती है आपसे ?



क्यों पापुलर हुआ रे तू ?


दिल्ली में लगभग दस साल से चल रहे "एफ़एम गोल्ड" चैनल को अब नवम्बर के पहले हफ्ते से १०६.४ से हटाकर १००.१ पर कर दिया जायेगा ...१००.१ वह फ्रीक्वेंसी है जिस पर आल इण्डिया रेडियो ने पिछले एक महीने से कामनवेल्थ गेम्स के लिए एक नया चैनल "एफ़एम दिल्ली" शुरू किया था ... (क्या आप कभी इस 'एफ़एम दिल्ली' को सुन पाए थे ?) बहरहाल ३१ ...से यह चैनल बंद हो जायेगा और इसकी जगह १००.१ मैगा हर्ट्ज़ पर एफ़ एम गोल्ड ले आया जायेगा ... ऐसा करते हुए आल इण्डिया रेडियो का कहना है कि इससे एफ़ एम गोल्ड की प्रसारण गुणवत्ता बढ़ जायेगी .... क्या आप भी ऐसा मानते हैं? क्या रेडियो मिर्ची कभी अपनी फ्रीक्वेंसी ९८.३ से बदलकर १०१.५ करेगा ?

याद रहे कि राजीव शुक्ला की कंपनी 'बैग फिल्म्स' के रेडियो धमाल छोटे शहरों में १०६.४ पर ही चलते हैं

Monday, May 31, 2010

एफ़ एम गोल्ड के प्रस्तुतकर्त्ताओं का हाल अब आउटलुक की ज़बानी जानिये

आउटलुक (हिन्दी) के सम्पादक ने जब एफ़ एम गोल्ड की हालत की खबरें सुनीं तो उन्हें चिंता हुई. उसका नतीजा यह स्टोरी है. कोई भी संवेदनशील नागरिक इन बातों को गंभीरता से लेगा. पढ़िए आप भी.

पेज १


पेज २

Tuesday, May 25, 2010

आकाशवाणी के दिल्ली केंद्र में रखे पुराने ग्रामोफोन रिकार्ड्स कहाँ गए ?

संगीत रसिकों को अक्सर एफ़ एम (गोल्ड) पर पुराने-पुराने गाने सुनकर लगता है की यह सारा संगीत आल इंडिया रेडियो के पास सुरक्षित होगा. पर काश ऐसा होता! कार्यक्रम करनेवाले अपने निजी प्रयासों से बहुमूल्य संगीत लाते हैं और श्रोताओं के साथ अपना सुख साझा करते हैं. सवाल है कि हज़ारों पुराने ग्रामोफोन रिकार्ड्स कहाँ गए?

Saturday, May 22, 2010

ख़बर पढ़कर आहत हुआ श्रोता


मित्रो,

हमारे इस चंद रोज़ पुराने अपना रेडियो बचाओ अभियान के दौरान अखबारों में बहुत कुछ छपा है और बहुत कुछ छपने को है । ढोल के अन्दर की पोल उजागर हुई है। एफ एम गोल्ड प्रस्तोताओं को सुन कर रीझने वाले श्रोता सकते में आये हैं । पत्रकार पसोपेश में पड़े हैं ये देखकर कि आवाज़ की पुरकशिश दुनिया से जुड़े इन कलाकारों के गले घोंटने पर आकाशवाणी के चंद अधिकारी किस क़दर आमादा हैं . विडम्बना ये है की ये अधिकारी उन्हीं के गले दबाने की कोशिश में हैं जिनके मुंह से निकला हुआ एक-एक शब्द इनके घर परिवार को चलाने में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। जबकि ये बेचारे बगैर तनख्वाह पाए साल-साल भर गुज़ार देते हैं और इस बारे में मुंह से आवाज़ तक नहीं निकालते । तिस पर तुर्रा ये कि अपमान और बदसलूकी भी इन्ही के हिस्से में आते हैं । जिस आकाशवाणी में नेपाली को विदेशी भाषा बताकर भारत के संविधान का खुलेआम उल्लंघन होता हो । सूचना के अधिकार के तहत मांगी जाने वाली सूचनाओं से खिलवाड़ होता हो । उसके दंभी अधिकारियों से आप और क्या उम्मीद रख सकते हैं । बहरहाल ,हमारे इस दर्द को अखबारों में पढ़कर बहुत से लोग आहत हुए हैं । हमारे साथ हुए हैं । जिनमें हमारे अनगिनत श्रोता भी शामिल हैं । ऐसे ही एक श्रोता और सामाजिक कार्यकर्ता श्री नगेन्द्र मिश्रा ने दैनिक जागरण में एफ एम गोल्ड के प्रस्तोताओं की बदहाली की खबर पढ़ी तो इस मोर्चे में शामिल होने की और हमारा हर संभव साथ देने की पेशकश की । इस सम्बन्ध में नगेन्द्र जी का सभी एफ एम गोल्ड presenters के नाम सन्देश हम प्रकाशित कर रहे हैं --

आवाज़ की दुनिया के हरदिलअज़ीज़ साथियो ,
हालांकि आपको हर दिल अज़ीज़ लिखते वक़्त थोडा सा संशय मन में आ रहा है क्योंकि आप शायद आकाशवाणी के उन कुछेक अधिकारियों के अज़ीज़ नहीं हैं जो आपकी बदौलत अपने पेट पाल रहे हैं । घर चला रहे हैं । और अकड़ के साथ खुद को आकाशवाणी का अधिकारी और आपका माईबाप बताते फिर रहे हैं। २० मई ,२०१० के दैनिक जागरण अखबार में आकाशवाणी में चल रही अनियमितताओं की और आपके साथ हो रहे दुर्व्यवहार की ख़बर पढ़ी तो सन्न रह गया । मन आहत हुआ ये जानकर कि आकाशवाणी दिल्ली केंद्र के निदेशक और एफ एम गोल्ड की programme executive जैसे अधिकारी इतने खुदगर्ज़ और एहसान फरामोश हो गए हैं कि ये उन कलाकारों का भी सम्मान नहीं करते जिनकी बदौलत इनका खुद का वजूद है । दैनिक जागरण को मैं इतनी बेबाकी के साथ ये ख़बर छापने के लिए धन्यवाद देना चाहूँगा । सच पूछिए तो ख़बर पढ़कर ये लगा कि आप जैसों से सहानुभूति रखने वाले संवेदनशील पत्रकार आज भी मौजूद हैंलेकिन अफ़सोस कि भारत के राष्ट्रपति के द्वारा जारी पत्रकों में गड़बड़ी करने वाले आकाशवाणी दिल्ली के केंद्र निदेशक और एफ एम गोल्ड की programme executive ख़बर छपने के बाद भी अपने पदों पर बने इठला रहे हैं .क्या इन्होंने अपनी शर्मोहया और नैतिकता बेच खाई है ?अगर ये आगे भी अपने अपने पदों पर बने रहे तो इसे अराजकता की हद ही समझिये । आकाशवाणी की महानिदेशक तो इनकी शिकायतें सुनकर सोई हुई हैं मगर आशा है कि मंत्री महोदया इस ओर दृष्टिपात करेंगी । आप सब से अनुरोध है कि अन्याय के विरुद्ध ये लडाई जारी रखिये । मैं और मेरे जैसे आपके कितने ही साथी इस लडाई में हर तरह से आपके साथ हैं । मैं एफ एम गोल्ड के सभी श्रोताओं से , आकाशवाणी के सभी संवेदनशील कर्मचारियों से ,पत्रकारों से और देश के सभी न्यायप्रिय नागरिकों से निवेदन करना चाहूँगा कि आपके सहयोग के लिए लामबंद हों ।
आपका साथी
नगेन्द्र मिश्रा

Thursday, May 20, 2010

आकाशवाणी के इतिहास में पहली बार कैजुअल्स अपने सम्मान की खातिर उठ खड़े हुए हैं!

मित्रो,
हम, लाखों रेडियो श्रोताओं के जीवन में खुशी और आशा का संचार करते हैं। उन्हें जानकारियों और ताज़ा खबरों से लैस करके उनके जीवन का अँधेरा मिटाते हैं। लेकिन... खुद हमारा जीवन कैसे अंधेरों से घिरा है।
दूसरों का जीवन प्रकाशित करने वाले हम खुद कितने बेबस और डरे हुए हैं ! कारण ...
कहीं हमारी ये दो टके की "नौकरी" न छीन जाए ... हमारी इसी मजबूरी और भय का दोहन करते हैं वो जो यहाँ पर परमानेंट हैं और जिनके लिए हम कीड़े मकोड़ों और दर दर के भिखारियों से अधिक हैसियत नहीं रखते . हर रोज़ पास बनवाने के लिए आकाशवाणी रिसेप्शन पर अपमान सहते हैं, प्रोग्राम को बेहतर बनाने में हमारे साथ कोई खडा नहीं होता , हाँ छोटी सी कमी को आउट ऑफ़ प्रपोर्शन प्रस्तुत किया जाता है, हम अप्रासंगिक और पुरानी पड़ चुकी मशीनों के साथ जूझते हैं, लड़कियां अक्सर ये शिकायत करती हैं की रात के ड्रायवर पिए होते हैं या उन्हें उनकी मंजिल से दूर कहीं छोड़ जाते हैं, अगर हम एन सी आर में रहते हैं तो हमको ट्रांसपोर्ट भी नहीं मिलता, जिस ऑफिस में प्ले लिस्ट बानाने तक को कागज़ न मिलता हो ...पीने का पानी न हो... अयोग्य और उथले अफसरों की खुशामद ही जहां ड्यूटी पाने का आधार हो... ऐसे ओर्गनाइज़ेशन से प्यार कैसे बढ़ पायेगा ...
यही सब सोचते हुए और अपने प्यारे रेडियो को उसकी खोयी हुई चमक में वापस लाने के लिए हम और आप "अपना रेडियो बचाओ" नाम का अभियान चला रहे हैं। इस बात की ज़रुरत हम सबने इसलिए समझी है कि हमारे ही बल पर यह इतना बड़ा सफ़ेद हाथी ज़िंदा है और हमारे खून पसीने और लगन का ही नतीजा है कि आकाशवाणी पर कोई कार्यक्रम प्रसारित हो पाता है ... वर्षों से अस्थाई और कैजुअल का धब्बा लगा कर जीते हुए हमें कोई ऐतराज़ नहीं था लेकिन हालात बाद से बदतर होते जा रहे हैं। अफसरों में यह अहसास पक्का होता जा रहा है कि वो इस आकाशवाणी के भाग्यविधाता हैं और संविधान के प्रति उनकी कोई जवाब देही नहीं है।
वर्षों से यही क्रम चला आता है कि छः -छः महीने साल - साल भर पेमेंट नहीं होता ... इस साल तो हद ही हो गई है वित्तीय वर्ष ख़त्म होने के बाद अब मई भी ख़त्म होने को आया और पैसे नहीं दिए जा रहे हैं... वैसे जब पेमेंट होता भी है तो अकाउंट डिपार्टमेंट वालों के नखरों से कौन अनजान है?
हम आपके इस भरपूर उत्साह और कंधे से कंधा मिला कर चलने की भावना को सर आँखों पर रखते हैं और आशा करते हैं कि आप इसी तरह भारी संख्या में एकजुट रहेंगे और अपने प्यारे रेडियो यानी आकाशवाणी को वापस सम्मान दिलाएंगे ... भूलना नहीं चाहिए कि यह वो इमारत है जहां देश की सर्वाधिक प्रतिभाशाली हस्तियाँ काम करने बुलाई जाती रही हैं और जिनके रात-दिन के परिश्रम से देश की जनता का जीवन कल्याणमय हुआ है. आज किसी को भी इस ओर्गनाइज़ेशन पर रोना आयेगा जहां भाई भतीजों की औसत प्रतिभाएं एयर पर हैं ...दीवारों पर पान की पीकें और थूक के थक्के ...आवारा कुत्तों की यहाँ वहां पडी भीड़ ... एफ़ एम गोल्ड पर फर्जी कागज़ साइन कराए जा रहे हैं और बैक डेट में अंडर टेकिंग्स ली जा रही हैं ...पेक्स अपनी कमियों का ठीकरा प्रस्तोताओं के सर पर फोड़ रही हैं और चाटुकारों को सर पर बैठा रही हैं ... रेनबो पर फीस का स्ट्रक्चर ऐसा मनमाना बना हुआ है कि मौजूदा पेक्स भी विसंगतियों को देखकर हैरान हैं ...इन्द्रप्रस्थ और राजधानी पर मिलने वाली फीस अनस्किल्ड दिहाड़ी मज़दूरों से भी कम है डीटीएच वाले ४०५ रुपये प्रतिदिन पाने के हकदार हैं पर उन्हें भी वर्ष २००८ से पैसे नहीं मिले हैं ...अभी तो सिर्फ दिल्ली केंद्र की बातें हुई हैं बाकी सभी विभागों की पूंछ उठाइये तो क्या नजर आएगा कल्पना की जा सकती है।
इन स्थितियों की खबर पाकर मीडिया और बौद्धिक जगत से लेकर आम श्रोता और बड़े -बड़े वो अफसरान भी दुखी हो उठे हैं जो एफ़ एम गोल्ड आदि चैनलों के साथ दिल की गहराइयों से जुड़े हैं ...आये दिन अखबारों और मीडिया में जो बातें चल रही हैं वो इस बात का प्रमाण हैं कि आपकी आवाज़ को जनता की आवाज़ माना गया है और सब लोग आपको प्यार करते हैं और आपका जीवन सुखी देखना चाहते हैं इसलिए डंटे रहिये और खुश होइए कि कि निकम्मे और मोटी चमड़ी वाली मुलायम आवाज़ें बस थोड़े दिनों के लिए ही हैं । क्योंकि जब तक चीज़ें ठीक नहीं हो जातीं ...यह सवाल पूछा जाता रहेगा कि "बताइये दुनिया के उस देश का नाम ...जहां के रेडियो पर बोलने वाला ही सबसे अशक्त, भयाक्रांत और अधिकारविहीन है?"

आइये इन दिनों मीडिया में चल रही चर्चाओं पर दृष्टि डालें ....

नवभारत टाइम्स, ५ मई २०१० यहाँ क्लिक करें


दैनिक नई दुनिया, ३ मई २०१०



दैनिक भास्कर में राजकिशोर, ५ मई २०१०



जनसत्ता में अज़दक १६ मई २०१०



राष्ट्रीय सहारा १८ मई २०१०


दैनिक जागरण, २० मई २०१०



दैनिक जागरण, २० मई २०१०



हिन्दुस्तान टाइम्स ,२६ मई, २०१०